ज़िन्दगी से बड़ी किसी चीज़ की सोच,ये बरसो की होगी पर दिन मौत का एक है,यु घुट कर तो हर दम मरना है मुश्किल,एक बार मर और फ़िर जीने की सोच,तेरे सफर की मुश्किलें तुझे तैयार करेंगी,लश्कर पर न जा अपनी तलवार की सोच,तेरी ताकत तेरे अपने है तो उन्हें आजमा,एतबार तो कर फ़िर इंकार की सोच,बेख़याली से किसी का ख्याल बन,तू तस्सवुर तो बन फ़िर ताबीर की सोच,बेसबब किसी के आने की ख्वाहिश कर,पहले ज़मीं तो बना फ़िर दिवार की सोच,जब सफर हो मुश्किलों मैं तो पत्थरो से पूछ,अपने ज़ाहिर पर न जा अपने किरदार की सोच,मिल जायेंगे जवाब सरे एक सवाल में,तू सवाल तो कर फ़िर जवाब की सोच,,,,,,,काश
Wo kuch alag tarah ke log honge jo teer tarkash main nahi, myan par rakhte hai,,hum to naye zamane ke shayar hai dosto, jo dil main hai wo zaban par rakhte hai,,"kash".
Tuesday, April 7, 2009
सोच
Monday, April 6, 2009
माँ
मुझे टुकडो में बाँट दिया ज़िन्दगी ने मेरी,
मुकम्मल जहान थी मेरी माँ की गोद मेरी,
मैं तो मासूम था बच्चे की जिद की तरह ,
मैं भी बदल गया बदल गई जिद मेरी,
उसके दामन में सारा आसमा चमकता था जैसे,
कब लगती थी सुकून से कुब खुलती थी आँख मेरी,
उसके हाथो की नरमाहट उसकी डांट में भी मिठास,
मेरे रोने पर रोती मेरी हसने पर हसती माँ मेरी ,
अब वो सुकून वो रहत मिटटी के निचे दबा है,
वो बड़े मकाम पर है वो मकामे इल्तिजा है,
मुझे कुछ न रहे याद पर याद है माँ मेरी,,,,,,
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