Tuesday, April 7, 2009

सोच

ज़िन्दगी से बड़ी किसी चीज़ की सोच,
ये बरसो की होगी पर दिन मौत का एक है,
यु घुट कर तो हर दम मरना है मुश्किल,
एक बार मर और फ़िर जीने की सोच,
तेरे सफर की मुश्किलें तुझे तैयार करेंगी,
लश्कर पर न जा अपनी तलवार की सोच,
तेरी ताकत तेरे अपने है तो उन्हें आजमा,
एतबार तो कर फ़िर इंकार की सोच,
बेख़याली से किसी का ख्याल बन,
तू तस्सवुर तो बन फ़िर ताबीर की सोच,
बेसबब किसी के आने की ख्वाहिश कर,
पहले ज़मीं तो बना फ़िर दिवार की सोच,
जब सफर हो मुश्किलों मैं तो पत्थरो से पूछ,
अपने ज़ाहिर पर न जा अपने किरदार की सोच,
मिल जायेंगे जवाब सरे एक सवाल में,
तू सवाल तो कर फ़िर जवाब की सोच,,,,,,,काश

2 comments:

daanish said...

काव्य में
कुछ ऐसा है
जो आकर्षित करता है ....
अभिवादन .

Anonymous said...

umda post!