Monday, December 8, 2008

वो मेरा नसीब

दिल के इतने करीब रहा वो जुदा न हुआ,,
खुदा है मेरा बस इसलिए खुदा न हुआ,,
उससे करीब कोई इस ज़माने मैं न हुआ,,
वो यु हुआ मेरा के फ़िर कोई दूसरा न हुआ,,
बहलाने को दिल भी मिले,दिलदार भी मिले,,
पर न मैं किसी का और कोई मेरा न हुआ,
मैंने गुजार दी जिंदगी बगैर हमसफ़र के,,
वो मेरे सिवा रहा मगर तनहा न हुआ,
उसकी एक जिद्द पर मैंने लुटा दिए ख्वाब अपने,,
वो हकीकत मैं मिला पर रुसवा न हुआ,,
उसने रखा हिसाब हर जीज़ का ज़िन्दगी की,,
मेरा हिसाब से मेरा ज़मी और आसमा न हुआ,,
मैंने दिल को मसोसकर अपने पहल की थी “ काश,,वो ज़ख्म ही रहा मगर कभी दावा न हुआ,,,,

4 comments:

shweta said...

its beautiful.. i dont have anyother words... its beautiful..

संगीता पुरी said...

बहुत सुंदर...आपके इस सुंदर से चिटठे के साथ आपका ब्‍लाग जगत में स्‍वागत है.....आशा है , आप अपनी प्रतिभा से हिन्‍दी चिटठा जगत को समृद्ध करने और हिन्‍दी पाठको को ज्ञान बांटने के साथ साथ खुद भी सफलता प्राप्‍त करेंगे .....हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं।

Unknown said...

its raelly very beautiful as shweta jee said....

keep writing

प्रदीप मानोरिया said...

उसने रखा हिसाब हर जीज़ का ज़िन्दगी की,,
मेरा हिसाब से मेरा ज़मी और आसमा न हुआ,,
आपका चिटठा जगत में स्वागत है निरंतरता की चाहत है अत्यन्त भावभीनी कविता
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