Tuesday, April 7, 2009

सोच

ज़िन्दगी से बड़ी किसी चीज़ की सोच,
ये बरसो की होगी पर दिन मौत का एक है,
यु घुट कर तो हर दम मरना है मुश्किल,
एक बार मर और फ़िर जीने की सोच,
तेरे सफर की मुश्किलें तुझे तैयार करेंगी,
लश्कर पर न जा अपनी तलवार की सोच,
तेरी ताकत तेरे अपने है तो उन्हें आजमा,
एतबार तो कर फ़िर इंकार की सोच,
बेख़याली से किसी का ख्याल बन,
तू तस्सवुर तो बन फ़िर ताबीर की सोच,
बेसबब किसी के आने की ख्वाहिश कर,
पहले ज़मीं तो बना फ़िर दिवार की सोच,
जब सफर हो मुश्किलों मैं तो पत्थरो से पूछ,
अपने ज़ाहिर पर न जा अपने किरदार की सोच,
मिल जायेंगे जवाब सरे एक सवाल में,
तू सवाल तो कर फ़िर जवाब की सोच,,,,,,,काश

Monday, April 6, 2009

माँ

मुझे टुकडो में बाँट दिया ज़िन्दगी ने मेरी,

मुकम्मल जहान थी मेरी माँ की गोद मेरी,

मैं तो मासूम था बच्चे की जिद की तरह ,

मैं भी बदल गया बदल गई जिद मेरी,

उसके दामन में सारा आसमा चमकता था जैसे,

कब लगती थी सुकून से कुब खुलती थी आँख मेरी,

उसके हाथो की नरमाहट उसकी डांट में भी मिठास,

मेरे रोने पर रोती मेरी हसने पर हसती माँ मेरी ,

अब वो सुकून वो रहत मिटटी के निचे दबा है,

वो बड़े मकाम पर है वो मकामे इल्तिजा है,

मुझे कुछ न रहे याद पर याद है माँ मेरी,,,,,,

Saturday, March 7, 2009

कोई वजह बन जाती है

मुझे वजह मिल जाती जीने की,
मैं बेवजह यु न मरता,

एक बार ही कोई दिल तोड़ता मेरा,
एक बार ही मैं मोहब्बत करता,

मैं यु ही गुमनाम मौत के बाद,
कीसी किताब मैं बंद न होता,

मैं भी सजता डर-ऐ-दरवेश की तरह,
मैं भी खुबसूरत नगमा बनता,

मुझे समेटने मैं जहान भी थकता,
मैं यु बिखरता टूट जाने के बाद,

पर यु ही मोहब्बत न मयस्सर है”काश
है खोने का गम कुछ पाने के बाद,,,

Saturday, December 20, 2008

हु मैं शायद यही

मेरा सफर मेरे लिए मायने रखता है,,
वो लोग कुछ और हैं जो मंजिल चाहते है,,,
मैं तो तन्हाई से घर को सजाता हु,,
वो लोग कुछ और है जो मेंहेफिल चाहते है,,
मैं तो अपने किरदार से ही उसका नाम पूछता हु,,
वो लोग कुछ और है तो बदले मैं हांसिल चाहते है,,,
मैं तो ज़मी से फलक तक हर शै में बिखरा हु,,
वो लोग कुछ और है जो मेरी तफसील चाहते है,,,"काश्

Monday, December 8, 2008

वो मेरा नसीब

दिल के इतने करीब रहा वो जुदा न हुआ,,
खुदा है मेरा बस इसलिए खुदा न हुआ,,
उससे करीब कोई इस ज़माने मैं न हुआ,,
वो यु हुआ मेरा के फ़िर कोई दूसरा न हुआ,,
बहलाने को दिल भी मिले,दिलदार भी मिले,,
पर न मैं किसी का और कोई मेरा न हुआ,
मैंने गुजार दी जिंदगी बगैर हमसफ़र के,,
वो मेरे सिवा रहा मगर तनहा न हुआ,
उसकी एक जिद्द पर मैंने लुटा दिए ख्वाब अपने,,
वो हकीकत मैं मिला पर रुसवा न हुआ,,
उसने रखा हिसाब हर जीज़ का ज़िन्दगी की,,
मेरा हिसाब से मेरा ज़मी और आसमा न हुआ,,
मैंने दिल को मसोसकर अपने पहल की थी “ काश,,वो ज़ख्म ही रहा मगर कभी दावा न हुआ,,,,

Saturday, December 6, 2008

मैंने ख़ुद को देखा है

मेरे चहरे से मेरा आइयेना कहता है,
तु खुश नसीब है जो मुझ में दिखाई देता है,
अब तो मैंने भी बदल दी है अपनी फितरत,
अब जो झूठा है वो ही सुच्चा दिखाई देता है,
मैं कभी जहीर न कर सका उनकी सूरत,
मैं तो वही रहा बदलती गई हकीकत,
वो नफरतों से भरे चेहरों का हुजूम,जो मुझमे ढुंढते रहे अपनी शक्सियत,
न रहा मुझमे सच दिखने का फैज़,न उनमे रहा ऑंखें मिलाने का रेज़,
मैं इनकार करू और सच दिखाऊ अगर,वो नाराज़ होकर मुझे तोड़ ही देंगे मगर,
मैं रहना चाहता हु इस दुनिया के फनाह होने तक,
देखता हु मेरी हकीकत लोग झुठलाते है कब तक,,,,”काश”